आयुर्वेद के मुताबिक गुर्दे के आस-पास जमा अतिरिक्त चर्बी या वसा को फैटी लिवर कहते हैं। इस समस्या को जल्दी दूर न किया जाए तो आने वाले समय में यह गंभीर रोग का रूप ले सकती है| फैटी हो जाने के कारण लिवर अपना काम करने में धीरे-धीरे असमर्थ होता चलता जाता है|

ये जरूरी नही है कि इसकी वजह सिर्फ तला हुआ और जंक फ़ूड ही है, अधिक मात्रा में शराब के सेवन से भी यह समस्या होने का खतरा बना रहता है| आयुर्वेदिक चिकित्सा में लिवर यानि यकृत को व्यक्ति के शरीर का सबसे अहम भाग माना जाता है|

यह आपके शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया को मूत्राशय के रास्ते के बाहर निकालकर पाचन क्रिया को संतुलित रखने का कार्य करता है। इसके अलावा फैटी लिवर अधिक मोटापे, एलर्जी, कब्ज, गैस, एसिडिटी जैसी अनेक समस्याओं का कारण बन सकती है| इस लेख में हम आपको फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार

फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार:

आयुर्वेदिक चिकित्सा में लाइफ अवेदा की भूमि आंवला, कालमेघ, लिव गार्ड कैप्सूल और आरोग्य वर्धनी वटी जैसी महत्वपूर्ण औषधियों का कॉम्बो काफी ज्यादा फायदेमंद माना गया है| इनका डॉक्टर की सलाह के अनुसार उचित उपयोग फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस जैसी कई बीमारी को जड़ से खत्म करने का काम करता है|

भूमि आंवला कैप्सूल : फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार

भूमि आंवला कैप्सूल को इस जड़ी बूटी के 100 % शुद्ध अर्क से तैयार किया गया है। यह पाचन अग्नि को उत्तेजित करने, भोजन को पचाने में मदद करने, पित्त दोष को संतुलित बनाए रखने और यकृत कोशिकाओं के कार्यों को पुनर्स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है। लाइफ अवेदा भूमि आंवला गैस्ट्रिक एसिड के उत्पादन को कम करके और पेट की परत को क्षतिग्रस्त होने से बचाकर पेट के अल्सर को रोकने में मदद करता है।

इस औषधि का पित्त को संतुलित रखने वाला गुण एसिडिटी और अपच की स्थिति में भी मदद करता है। यह अपने मूत्रवर्धक गुण के कारण गुर्दे की पथरी को मूत्राशय के रास्ते बाहर निकालने का काम भी करता है

उपयोगी सामग्री:
भूमि आंवला रस:- 500 मिलीग्राम

ऐसे करें उपयोग:
1-2 कैप्सूल दिन में दो बार भोजन के बाद सादे पानी के साथ या वैद्य के निर्देशानुसार लें|

कालमेघ कैप्सूल : फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार

इस औषधि का सेवन लिवर, गॉल ब्लैडर, पेट, आंतों, फेफड़ों और त्वचा को अनेक रोगों से बचा कर रखता है। इसका हाइपोग्लाइसेमिक गुण इंसुलिन के स्तर को कम करने और रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। ये कैप्सूल मौसमी परिवर्तनों के कारण होने वाली बीमारियों को दूर करने में सहायता करते हैं और रक्त से यूरिया, यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन, उच्च कोलेस्ट्रॉल जैसे हानिकारक पदार्थों को निकालकर लिवर को स्वस्थ बनाए रखते हैं। आयुर्वेद में कालमेघ अपने इम्यूनोमॉड्यूलेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के लिए विश्व विख्यात जड़ी-बूटी मानी जाती है|

मुख्य सामग्री:
कालमेघ अर्क: – 500 मिलीग्राम

इस्तेमाल करने की विधि:
1-2 कैप्सूल दिन में दो बार भोजन के बाद सादे पानी के साथ या चिकित्सक के निर्देशानुसार लें

लिव गार्ड कैप्सूल : फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार

इसमें किया गया कुटकी, कालमेघ, त्रिफला, भृंगराज, कासनी, गिलोय, पुनर्नवा और मकोई जैसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का मिश्रण आपके स्वास्थ्य की अनेक प्रकार से मदद करता है। यह लिवर के आस-पास एकत्रित वसा को हटाकर उसको डिटॉक्सिफाई करने का काम करता है, जिससे उसकी सामान्य कार्यप्रणाली संतुलित बनी रहती है। इस औषधि के लाभकारी गुण हेपेटाइटिस और पीलिया जैसे संक्रमणों से बचाने में मदद करने के अलावा शरीर में तीनों दोषों को संतुलित बना कर रखते हैं।

उपयोग करने की विधि:
वयस्कों के लिए 1-2 कैप्सूल दिन में एक या दो बार या वैद्य की सलाह के अनुसार|

आरोग्य वर्धनी वटी

इस औषधि को लोग “सर्वरोग प्रश्मणी” के नाम से भी जानते हैं, इसका उपयोग सभी प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है। यह तीनों दोषों वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में सहायता प्रदान करती है| इस टैबलेट का उपयोग शरीर में लिवर, त्वचा, पाचन विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। आरोग्यवर्धिनी वटी का उपयोग हृदय स्वास्थ्य को बेहतर करेगा और शरीर से अतिरिक्त पदार्थ और विषाक्त पदार्थों को मूत्राशय के रास्ते निकालकर रक्त को शुद्ध करने का काम करता है।

उपयोग करने की विधि:
1 गोली दिन में एक या दो बार भोजन से पहले या बाद में या आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशानुसार लें। इसे आमतौर पर शहद, ताजा अदरक के रस, नीम के रस, पानी या दूध के साथ लिया जाता है।

आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक:

अगर आयुर्वेदिक दवाइयों का कम से कम 3 महीने तक लगातार सेवन किया जाए तो लिवर और किडनियां की अनेक बीमारियों से राहत मिल सकती है और उनको फिर से पुनर्जीवित किया जा सकता है| इसके अलावा यह आपके शरीर में जमे विषैले बैक्टीरिया को भी जल्दी बाहर निकालने का काम करती है| इनके स्वास्थ्यवर्धक लाभ की बात करें तो यह पाचन क्रिया दुरुस्त करने, खून साफ करने और एसिडिटी जड़ से खत्म करने का काम करती हैं। इनके नियमित उपयोग से हृदय मजबूत काफी बीमारियों से बचा रहता है और खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होने लग जाती है| 

आयुर्वेद के अनुसार फैटी लिवर में क्या करें और क्या न करें:

फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार लेते समय सी फूड, हरी सब्जियां, मौसमी फल, बादाम, एवोकाडो, ओलिव ऑयल और साबुत अनाज जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना उचित रहता है| इसके अलावा व्यक्ति को मोटापा कम करने के लिए प्रतिदिन एक्सरसाइज, योग, व्यायाम और प्राणायाम करना भी जरूरी माना गया है| 
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की मानें तो लीन और व्हाइट मीट लिवर के आस-पास वसा एकत्रित करने का काम करता है, इसलिए इनके सेवन से दूरी बनाएं| रेड मीट, अनुचित नारियल तेल का उपयोग, कैंडी, डिब्बाबंद आहार, तला हुआ आहार, जंक फ़ूड, शराब, धुम्रपान और नशीली दवाइयों के सेवन से बचना चाहिए|  

आयुर्वेदिक उपचार से संबंधित अन्य जानकारी:

आधुनिक चिकित्सा में पूर्ण रूप से फैटी लिवर का कोई उपचार तैयार नही हुआ है| परन्तु दिनचर्या में परिवर्तन, उचित आहार का सेवन और कुछ प्राकृतिक औषधियों के उपयोग से आप इस समस्या से सुरक्षित बने रह सकते हैं, जिनके बारे में अभी तक हम आपको जानकारी देते आए हैं| अपने शरीर में इन्सुलिन की मात्रा संतुलित रखने का प्रयास करें और कॉलेस्ट्रोल लेवल बढ़ने से रोकने के लिए डॉक्टर से संम्पर्क बनाए रखें| 
अधिक दवाओं का सेवन फैटी लिवर समस्या को बढ़ा सकता है, बिना वैद्य की सलाह के इनका उपयोग न करें| अगर आपको किसी भी समय फैटी लिवर का लक्षण महसूस हो तो उसी समय डॉक्टर के पास जाकर परामर्श करें। ऐसा करने से ठीक समय पर इस गंभीर परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है|

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